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सेवादार

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Sunday, 10 August 2014

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      ~: दसवें गुरू 
    श्री गुरू गोविंद सिंह
  द्वारा दिये गये 52 हुक्म :~

1. धर्म की कमाई करनी। 

2. दसवँत देना (कमाई का दसवाँ भाग दान-पुन्य में देना)। 

3. गुरबाणी याद करनी। 

4. अमृत समय (ब्रहम समय) में जागना। 

5. प्यार से गुरूसिक्खों की सेवा करनी। 

6. गुरूखिक्खों से गुरबाणी के अर्थ समझने। 

7. पाँच कँकारों की पक्की रहित रखनी। 

8. शब्द कीर्तन (गुरबाणी) का अभ्यास करना। 

9. ध्यान सत-स्वरूप सतिगुरू का करना। 

10. सतिगुरू श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी को मानना। 

11. सभी कार्यों के आरम्भ के समय अरदास करनी। 

12. जन्म, मरन, विवाह, आनन्द आदि के समय श्री जपुजी साहिब जी का पाठ करके कढ़ाह प्रसाद तैयार करके श्री अनंद साहिब जी का पाठ, अरदास करके पाँच प्यारों और हजूरी ग्रन्थी सिंघों आदि को वरताने के बाद संगत को देना। 

13. जब तब कढ़ाह प्रसाद बँट रहा हो, तब तक सारी संगत अडोल बैठी रहे। 

14. विवाह किये बिना किसी प्रकार का शारीरिक संबंध नहीं रखना। 

15. पर नारी को माँ, बहिन, बेटी की तरह मानना। 

16. किसी स्त्री को गाली नहीं देना। 

17. जगत झूठः तम्बाकू और मीट नहीं खाना। 

18. रहितवान और नाम जपने वाले गुरूसिक्खों की संगत करनी। 

19. जितने काम अपने स्वयं के करने वाले हों, उनके प्रति आलस नहीं करना। 

20. गुरबाणी का कीर्तन और कथा रोज सुनना और करना। 

21. किसी की निन्दा चुगली नहीं करनी, किसी से घृणा नहीं करनी। 

22. धन, जवानी कुल और जात का अभिमान नहीं करना। 

23. अपनी मत ऊँची से ऊँची रखनी। 

24. शुभ करम करते रहना। 

25. दिमाग और बल का दाता केवल वाहिगुरू (ईश्वर, परमात्मा) जी को ही जानना। 

26. कसम खाने वाले पर ऐतबार नहीं करना। 

27. स्वतँत्र रहना। 

28. राजनिति भी पढ़ना, जानकारी रखना।

29. शत्रु के साथ साम, दाम और भेद आदि उपाय अपनाने के बाद यु़द्ध करना धर्म है। 

30. शस्त्र विद्या और घुड़-सवारी का अभ्यास करना। 

31. दूसरे मतों की पुस्तकें, विद्या पढ़नी लेकिन पक्का विश्वास केवल गुरबाणी और परमात्मा (वाहिगुरू) जी पर ही रखना। 

32. गुरू का उपदेश धारण करना। 

33. श्री रहिरास साहिब जी का पाठ करके खड़े होकर अरदास करनी। 

34. सोते समय श्री र्कीतन सोहिले साहिब जी का पाठ करना। 

35. बालों को नँगा नहीं रखना। 

36. सिक्खों, सिंघों का पूरा नाम लेकर बुलाना, आधा नहीं। 

37. शराब नहीं पीनी। 

38. बाल कटें लोगों के यहाँ कन्या नहीं देनी, कन्या उस घर में देनी जहां पर परमात्मा (अकाल पुरूख) की सिक्खी हो। 

39. सभी काम, श्री गुरू ग्रन्थ साहिब की आज्ञा और गुरबाणी अनुसार की करने हैं। 

40. चुगली करके किसी का काम नहीं बिगाड़ना। 

41. कड़वे वचन बोलकर किसी का दिल नहीं दुखाना। 

42. दर्शन यात्रा, गुरूद्वारों की ही करनी। 

43. किसी को वचन देकर उसे पूरा करना।

44. अतिथी, परदेसी, जरूरतमँद, दुखी, अपँग की यथासम्भव सहायता करनी। 

45. लड़की की कमाई को पाप मानना। 

46. दिखावे का सिक्ख नहीं बनना। 

47. सिक्खी बालों के साथ निभानी। बालों को गुरू समान जानकर अदब करना। 

48. चोरी नहीं करना, चोरी में शामिल भी नहीं होना, ठगी, धोखा, दगा नहीं करना। 

49. गुरूसिक्ख का विश्वास करना। 

50. झूठी गवाही नहीं देनी। 
   
51. झूठ नहीं बोलना। 

52. लंगर और प्रसाद सभी तरफ एक जैसा बाँटना।

~★★[वाहेगुरू जी]★★~
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