सपने में साँई दिखे
चावल दे बिखरायें
मेघा से फिर यूँ कहे
मुझ्को त्रिशुल लगायें
मेघा चौंका नींद से
कोई नही दिखाये
यहाँ वहाँ बिखरे हुये
चावल ही वह पायें
फिर दौड़ा मस्जिद गया
सपना दिया बतायें
साँई से आज्ञा माँगे
देऊँ त्रिशुल लगायें
आज्ञा मैनें दी तुझे
बात सत्य ही होये
शब्द हमारे अर्थमय
थोथे कभी ना होये
मेघा फिर कहने लगा
दरवाजे थे बन्द
साँई कैसे आ गये
मेरे मन के द्वन्द
साँई जी ने यह कहा
मैं हूँ ऐसा संत
मेरा ना कोई आदि है
और ना कोई अंत
ॐ साँई राम जी
श्री साँई बाबा जी के चरण कमलों में हमारी अरदास है
कि बाबा जी अपनी कृपा दृष्टी आप सभी पर निरंतर बरसाते रहे