एक संत ने एक रात स्वप्न देखा कि उनके पास एक देवदूत
आया है। देवदूत के हाथ में एक सूची है। उसने कहा, ‘यह उन
लोगों की सूची है, जो प्रभु से प्रेम करते हैं।’ संत ने कहा, ‘मैं
भी प्रभु से प्रेम करता हूं। मेरा नाम तो इसमें अवश्य होगा।’
देवदूत बोला, ‘नहीं, इसमें आप का नाम नहीं है।’
संत उदास हो गए। फिर उन्होंने पूछा, ‘इसमें मेरा नाम
क्यों नहीं है। मैं ईश्वर से ही प्रेम नहीं करता बल्कि गरीबों से
भी प्रेम करता हूं। मैं अपना अधिकतर समय गरीबों की सेवा में
लगाता हूं। उसके बाद जो समय बचता है उसमें प्रभु का स्मरण
करता हूं।’ तभी संत की आंख खुल गई।
दिन में वह स्वप्न को याद कर उदास थे। एक शिष्य ने
उदासी का कारण पूछा तो संत ने स्वप्न की बात बताई और कहा,
‘वत्स, लगता है सेवा करने में कहीं कोई कमी रह गई है।’ दूसरे दिन
संत ने फिर वही स्वप्न देखा। वही देवदूत फिर उनके सामने
खड़ा था। इस बार भी उसके हाथ में कागज था। संत ने बेरुखी से
कहा, ‘अब क्यों आए हो मेरे पास। मुझे प्रभु से कुछ नहीं चाहिए।’
देवदूत ने कहा, ‘आपको प्रभु से कुछ नहीं चाहिए, लेकिन प्रभु
का तो आप पर भरोसा है। इस बार मेरे हाथ में दूसरी सूची है।’
संत ने कहा, ‘तुम उनके पास जाओ जिनके नाम इस सूची में हैं। मेरे
पास क्यों आए हो?’
देवदूत बोला, ‘इस सूची में आप का नाम सबसे ऊपर है।’ यह सुन
कर संत को आश्चर्य हुआ। बोले, ‘क्या यह भी ईश्वर से प्रेम
करने वालों की सूची है।’ देवदूत ने कहा, ‘नहीं, यह वह सूची है
जिन्हें प्रभु प्रेम करते हैं। ईश्वर से प्रेम करने वाले तो बहुत हैं,
लेकिन प्रभु उसको प्रेम करते हैं जो गरीबों से प्रेम करते हैं। प्रभु
उसको प्रेम नहीं करते जो दिन रात कुछ पाने के लिए प्रभु
का गुणगान करते है।’ तभी संत की आंख खुल गई।